Friday, October 3, 2008

167 वाँ दिन - भाग 1

अस्सलामुअलाईकुल वा रहमतुल्लाही वा बरकतू

अगर इरादे नेक न हो तो सारे अच्छे कर्म बेकार हो जाएगे।
हमारे सलह, सदाक़ात, सियाम (उपवास) या अन्य अच्छे कर्म का
कोई मूल्य नहीं यदि हमारे इरादे नेक नहीं है. एक भक्त और एक पाखंडी की प्रार्थना एक जैसी हो सकती है लेकिन उनके इरादें (उद्देश्य / प्रयोजन) अलग होते हैं।. रसूल अल्लाह (सल्लालाहू अलाही वा सल्लाम) ने कहा है कि "कर्मों का इनाम उनके आशय पर निर्भर करता है और कहा
हर व्यक्ति को इनाम उसके इरादे के अनुसार मिलेगा।" इरादा दिल में होता है। अगर हृदय भ्रष्ट है
इरादा भी भ्रष्ट होगा, और हर वो काम, जो गलत मंशा के साथ किया जाए वो व्यर्थ ही होगा।

http://blogs.bigadda.com/ab/2008/10/02/intentions/#more-461

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