Wednesday, October 1, 2008

166 वां दिन

प्रतीक्षा, मुंबई अक्टूबर 1, 2008 10:44 pm

"जो ज्यादा सोचते हैं, बहुत कम काम कर पाते हैं"
"सफलता स्थायी नहीं है। असफलता घातक नहीं है। लगे रहने की, जुटे रहने की हिम्मत ही सबसे ज्यादा मायने रखती है।"
- विंस्टन चर्चिल
मेरे मोबाइल पर दो और बेहतरीन उद्धरण/ऊक्तियाँ।

और वे इतनी मूल्यवान हैं।

कितना सच कहा है कि हम सफलता को स्थायी रूप में न देखे। एक भी क्षण ऐसा नहीं है जब कोई यह कह सके कि उनकी सफलता स्थायी है। चाहे कारोबार मे हो या किसी और व्यवसाय में। कहीं भी नहीं। और हमारे फिल्म उद्योग में तो बिलकुल ही नहीं। हर दिन ज़िंदा रहने के लिए एक संघर्ष है - बेहतर काम का, सुधार का, स्वीकृत होने का, सफलता हासिल करने का संघर्ष। लेकिन वहाँ भी पहुँच कर, कोई गारंटी नहीं है कि आपका स्थान कायम रहेगा या कोई आवश्यकता ही न हो उसकी देखभाल की, विचार की और उस पर ध्यान देने की.

और विफलता। कभी घातक नहीं होती। यह घातक कैसे हो सकती है, जब असफलता अंतिम मंजिल ही नहीं है। हाँ, लगे रहने की हिम्मत ही मायने रखती है। क्योंकि जब आप लगे रहते हैं, तो आप सफलता की संभावनाओं के द्वार खोल देते हैं। आप अतीत की असफलता पर काबू पाने वाली संभावनाओं के द्वार खोल देते हैं।

जब आप असफल हो जाते हैं, तो एक तरह से सीढ़ी के नीचे वाली पायदान पर पहुँच जाते हैं। लेकिन जब आप उपर की ओर देखते है तो आप को शेष सीढ़ी और उसके पायदान दिखते हैं। ये वे पायदान हैं जिन पर चल कर हमें उपर चड़ना है, उपर उठना है। और ये कभी नहीं होगा अगर हम साहसपूर्वक प्रयास न करें और लगे रहे। जब हम हार मान लेते हैं और निष्क्रिय हो जाते हैं, तब हम यह मानने को बाध्य हो जाते हैं कि हमारे उपर की पायदानों पर चढ़ना असम्भव है। लेकिन बिना चढ़े हम कैसे कह सकते हैं कि उन पर चढ़ना असम्भव है। इसलिए मैं हर सुबह उठ कर उपर देखता हूँ और देखता हूँ ज़िंदगी की सीढ़ी की पायदानें और अपने आप को तैयार करता हूँ ताकि उन पर चढ़ने का प्रयास कर सकूँ। मैं थक सकता हूँ, ताकत और ऊर्जा कम हो सकती है, लेकिन मैं प्रयास करता हूँ कि मैं जुटा रहूँ, लगा रहूँ। और मैं प्रयास करता रहता हूँ, करता रहता हूँ, करता रहता हूँ और उस भावना को कभी हावी नहीं होने देता जिसमें साहस की कमी झलके।

आप में से बहुतो ने मेरे काम करते रहने की इच्छा पर अंकुश लगाया है। बहुत से मेरी उम्र और मेरी तबीयत को देख कर जली-कटी कहते हैं। उनसे मुझे यही कहना है कि हो सकता है कि आज मैं सीढ़ी की सबसे नीचे वाली पायदन पर हूँ, लेकिन जब तक सीढ़ी पर हूँ और उपर जाने वाली पायदाने दिख रही है, मैं लगा रहूँगा सीढ़ी चढ़ने में। फिर से शीर्ष तक, शिखर तक पहुँचने के लिए नहीं। वह तो धृष्टता होगी। लेकिन सीढ़ी पर बरकरार रहने के लिए। चाहे कोई भी पायदान हो।

और सर्वशक्तिमान मुझे हिम्मत दे कि मैं ऐसा कर सकूँ ..
नवरात्रि दिवस के स्थापना पर बधाई ..
ईद के लिए बधाई ...

यह बात दिव्य नहीं है कि विभिन्न विश्वासों के धार्मिक समारोह, एक साथ, लगभग एक ही समय पर आते हैं

"बैर बढ़ाते मंदिर मस्जिद, मेल कराती मधुशाला"

सब को मेरा प्यार और ऐसी आशा कि आप के सारे समारोह दिव्य हो --



अमिताभ बच्चन

http://blogs.bigadda.com/ab/2008/10/01/day-166/

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