Tuesday, September 30, 2008

164 वां दिन

फिल्म सिटी, मुंबई सितम्बर 29, 2008 6:30 pm

इस महानगर पर सूरज डूब रहा है। मैंने अपने छोटे से नोकिया मोबाइल से एक और तस्वीर लेली।

मैं लक्सर/पार्कर पेन की शूटिंग के लिए फिल्म सिटी में हूँ। और अब मुझे पता चल गया कि कल रात मुझे क्या परेशानी थी।
मुझे काम पर जाने की आवश्यकता थी. स्टूडियो, कैमरा, बत्तियाँ और वातावरण ने मुझे जीवंत, मजबूत और खुशहाल बना दिया है.

मैंने सोचा कि मैं जल्दी से बता दूँ आपको ये बात, अगले शाट लेने से पहले।
लेकिन मैं बाद में और अधिक विस्तार से बात करेंगे।

दुर्भाग्य से, कुछ और बुरी खबर भी है। और जो लोग भारत में हैं वे इसके बारे में कल अखबारों में पढ़ेंगे। मैं इस पर अभी कई विभिन्न कारणों की वजह से कुछ कह नहीं सकता। जब मेरे पास ज्यादा जानकारी होगी, मैं आपको ज़रूर बताऊंगा।

इसके अलावा मैं आज 'द्रोण' का ट्रायल देखने जा रहा हूँ। आप को उसकी भी खबर दूँगा। बच्चों ने 2 अक्टूबर के लिए यह बहुत बड़ा प्रयास किया है। इन बच्चों द्वारा बनाई गई फ़िल्म के लिए आपकी प्रार्थना और शुभकामनाओं की जरूरत है।

सब को प्यार,
अमिताभ बच्चन

http://blogs.bigadda.com/ab/2008/09/29/mobile-pix/#more-458

163 वां दिन

प्रतीक्षा, मुंबई सितम्बर 28/29, 2008 12:03am


हार की भावना और अवसाद मन में है। सब निरर्थक लग रहा है।

जो भी कार्य हो रहा है सब व्यर्थ लगता है। इन परिस्थितियों में और काम के बीच सब व्यर्थ नज़र आ रहा है। अस्तित्व ही व्यर्थ है।

हम एक विशेष दिशा में खींचे जा रहे हैं बिना किसी कारण के। एक ऐसी दिशा जिसका न कोई निश्चित पथ है न दिशा।

ऐसा क्यों है?

क्या यह अवसरों की कमी की वजह से है? या कि जीवन की और उदासीनता है? क्या है? हर बात अब अनिश्चित सी लगती है। यह ठीक नहीं है। मानसिक रूप से, शारीरिक रूप से या सृजनात्मक तरीके से। मुझे जल्दी ही व्यस्त हो जाना चाहिए। आलस्य दिमाग और सोच को कुंद कर देता है।

यह हमें निंदक बना देता है। हम हर वक़्त मुद्दों की चीरफ़ाड़ करते रहते हैं, जिनसे हमारी ज़िंदगी का या किसी ओर की ज़िंदगी का कोई सम्बंध नहीं है। कितनी उर्जा और कितना समय बर्बाद होता है।

यह एक और दिन आराम का गुज़रा .. हा, हा .. अब मुझे इस तरह के दिनों की आदत हो गई है।

तो मैंने वो किया जो पिछले तीन महीनों में कभी नहीं किया। धूप में बैठकर विटामिन डी का रसपान किया। आधी रात को अचानक ठंड लगी और मैं काँप गया। बहुत जोर की ठंड लग गई। मैंने कुछ उपाय किए। ए-सी बंद किया, नाक में वैपोरब लगाया, कुछ और गरम कपड़े पहने, और बैठ कर टी-वी देखने लगा। आधे घंटे मे सब सही हो गया। ठंड और कंपकंपी की तीव्रता से गायब हो गई। लेकिन नींद उड़ चुकी थी और टी-वी का चस्का लग चुका था। काफ़ी देर तक सोचता रहा ....

जीवन और मृत्यु के विषय पर। विश्वास और प्रतिबद्धता के विषय पर। दुर्बुद्धि और प्रचार के विषय पर। प्रोफ़ाइल और जोखिम के विषय पर। और कुछ ठोस विचार उभरे। वे मेरे थे और कठोर थे और समाज में खुले आम सभ्य बहस के लायक नहीं। इसलिए मैं उन्हें बताना नहीं चाहता।

लेकिन मैं .. ज़रूर बताऊँगा … किसी दिन .. यह ब्लॉग मेरा है और मुझे किसी का भय नहीं है कि मैं यहाँ क्या लिखूँ क्या क्या न लिखूँ।

आप सब को मेरा प्यार,

अमिताभ बच्चन
http://blogs.bigadda.com/ab/2008/09/29/day-163/#more-457

162 वां दिन

प्रतीक्षा, मुंबई सितम्बर 27/28, 2008 12:57am

आज का पूरा दिन 'जुनून', NDTV ईमेजिन के संगीत शो, में बीता, जहाँ अभिषेक और मुझे 'अनफ़ारगेटेबल कांसर्ट' के प्रचार के लिए जाना पड़ा और हाँ फाइनल के लिए पुरस्कार भी तो देने थे।

नितिन देसाई एक सक्षम और उद्यमी सेट डिजाइनर हैं। उन्होंने करजात में एक स्टूडियो का निर्माण किया है। एकड़ों खुली जमीन और आँखों के लिए तो बस एक लुभावनी दावत, खासकर मानसून के तुरंत बाद तो क्या कहने।

हमें वहाँ तक जाते-जाते 3 घंटे लगे - ट्रेफ़िक की वजह से। पर वहाँ पहुंचने पर बहुत अच्छा लगा कि हम दोनों भी इस उत्तम श्रेणी के कार्यक्रम का एक हिस्सा है। देखिए ना, कितनी तेजी से भारत में मनोरंजन की दुनिया बदल गई है। विश्वास ही नहीं होता है। लाखों लोग मशगूल है पूरी संजीदगी से एक ध्येय की ओर। कितना कुछ खप जाता है एक शो को तैयार करने में! मैं चकित हूँ! मगर खुशी है कि प्रतिभाओं को उभरने में अब आसानी होगी और उन्हें ज्यादा अवसर मिलेंगे अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए। एन डी स्टूडियो, अपने आप में एक शहर की तरह है। शूटिंग के लिए विशाल फर्श, सितारों और स्टाफ के लिए कमरें, आउटडोर शूटिंग के लिए वास्तविक अनुपात में बने बनाए सेट, कार्यालयों और प्रबंधन के लिए अलग क्षेत्र, जो चाहिए वो सब कुछ।

इन दिनों अपने प्रचार के लिए एक लोकप्रिय टीवी प्रोग्राम का उपयोग करना एक आम बात हो गई है। आज हम आमंत्रित मेहमान हैं। हमें शो में आदर सम्मान दिया जाता है। हमें सुसज्जित कुर्सियों पर बिठाया गया। हम प्रतियोगियों का कार्य देखते हैं और विजेताओं को इनाम देते हैं। बीच बीच में हमारी फिल्म या हमारे शो के बारे में बहुत सी बातें की जाती है। 'द्रोण' और 'अनफ़ारगेटेबल कांसर्ट' के बारे में बातें होती हैं, कैसा अनुभव रहा, कैसे उनके प्रोमोज़ थे, आदि आदि।

वे हमारा फ़ायदा करते हैं हम उनका। सब व्यापार है।

लेकिन ...

इस छोटी सी लेन देन के बीच में भी जीवन मौजूद है। एक अनजान, अनसुनी प्रतिभा का जीवन जो हम सब को आश्चर्यचकित कर देता है।

क्या लय है क्या ताल है। क्या गीत है क्या संगीत है। उनके दृष्टिकोण में कितना आत्म-विश्वास है और अनुग्रह। जैसे रचनात्मकता का एक विशाल भंडार हो। मेरा दिल उनके लिए दुआ मांगता है।

वे देश के कोने कोने से आए थे। सिर्फ़ महानगरों से नहीं। वास्तव में ज्यादातर प्रतियोगी छोटे शहरों से आए थे। कुछ आसपास के देशों से भी आए थे। और वे इतनी आशा और विश्वास के साथ आए थे।

वे सच्चे कलाकार हैं। जीतने के लिए जी जान लगाते हैं। पुरस्कार में एक कार, कुछ पैसे, और एक आकर्षक अनुबंध। वाहवाही और प्रशंसा भी साथ में। वे विनम्र हैं और समर्पित। सरल और अछूते। वे महान चरित्र हैं। और वे एक आवाज़ है। एक असाधारण आवाज़।

बहुत लोग भाग लेते हैं। बहुत से लोगों को बाहर कर दिया जाता है। कुछ लोग ही अंत तक पहुँचते हैं। लेकिन सब में प्रतिभा है किसी भी स्पर्धा को जीतने की।

चयन की प्रक्रिया लोकतांत्रिक होने की वजह से उन्हें निकाल दिया जाता है। वरना सभी जीतने के हक़दार हैं। हालांकि उनमें से एक ही जीत पाएगा, पर मेरे लिए सभी विजेता हैं।

मैं निर्णायक बन कर नहीं बैठता हूँ। मैं बन ही नहीं सकता। एक बार दक्षिण अफ्रीका में मिस वर्ल्ड के लिए जज बना था और वह मेरे जीवन का सबसे पशोपेश वाला क्षण था। तुम कैसे एक इंसान को दूसरे इंसान से कम नम्बर दे सकते हो। मनुष्य सब एक जैसे हैं। सभी बुद्धिमान और सुंदर और इनाम के योग्य। कैसे एक व्यक्ति दूसरे की तुलना में बेहतर हो सकता है। ऐसा नहीं होना चाहिए, और मैं इसके पक्ष में नहीं हूँ।

एक माँ के लिए एक बच्चा दूसरे बच्चे से कम कैसे हो सकता है?

इसलिए मैं स्पर्धाओं से दूर रहता हूँ। उनसे मुझे दु:ख पहुँचता है। अंत में जब तीन प्रतिद्वंदी रह जाते हैं तो उन में से दो को कोई कैसे कहे कि विजेता तीसरा है? कितना मुश्किल है और कठिन है! इसलिए हमारा परिवार ऐसे पैनलों पर बैठने से कतराता है। हमारा इस शो में उपस्थित होना अनिवार्य है, इसलिए हम यहाँ आए हैं, लेकिन हम निर्णायक नहीं बनेगे, जीत-हार का फ़ैसला नहीं करेंगे। मुझे जा कर विजेता पुरस्कृत करने हैं। बस इतना ही। और कुछ नहीं। और मैं बस यहीं करता हूँ।

वापस आते वक़्त, नितिन ने मुझे बुलाया उस धारावाहिक के सेट पर जिसे वे प्रोड्यूस कर रहे हैं, जिसमें महान मराठा, छत्रपति शिवाजी महाराज की जीवन गाथा है। युवा अभिनेता जो शिवाजी की भूमिका अदा कर रहा है, वो इस महान योद्धा की जीती जागती तस्वीर है। एक टीवी सीरियल पर इतना खर्च और इतनी विस्तृत जानकारी देख कर मैं चकित हूँ। मैंने कुछ प्रोमोज में कुछ अंश देखे। देखने में ऐसी कि जैसे एक बड़े बजट की फिल्म। नितिन चाहते हैं कि शिवाजी के दरबार में राज्याभिषेक के दृश्य में मैं भी रहूँ। मैं भरसक कोशिस कर रहा हूँ कि इसके लिए समय निकाल पाऊँ।

नितिन ने मेरी कई फिल्मों के लिए काम किया है। उनमें से सबसे महत्वपूर्ण कार्य था 'कौन बनेगा करोड़पति' और जोधा अकबर के सेट का निर्माण। सृजनशील हैं, बेहद प्रतिभाशाली हैं, और बहुत ही साधारण परिवेश से है, और आज अत्यंत सफल। लेकिन आज भी वैसे ही विनम्र हैं जैसे पहले थे। मैंने हमेशा इस तरह के पुरुषों की प्रशंसा की है।

वे एबी कॉर्प की एक और महत्वाकांक्षी परियोजना पर जल्दी ही काम करने वाले हैं, जहाँ उनकी क्षमता की जमकर परीक्षा ली जाएगी। लेकिन मैं जानता हूँ कि वे उसे बखूबी निभा लेंगे।

वापसी पर ट्रेफ़िक के डर की वजह से, और इस वजह से भी कि अभिषेक को जल्दी शाम को एक शूटिंग पर पहुँचना है, उन्होनें हमारे लिए एक हेलिकॉप्टर की व्यवस्था की। हमें सिर्फ़ 15 मिनट लगे वापस आने में। ठीक घर के दहलीज पर उतारा। कितना सुविधाजनक और समय की बचत भी।

जया और मैं रात का खाना खाने बैठें और हम देख रहे थे वही प्रोग्राम जिसमें हम अभी उपस्थित थे। अच्छा लगा। अनफ़ारगेटेबल टूर का प्रचार अच्छा लगा। और द्रोण का प्रचार भी। लेकिन जिन प्रतिभाओं को आज पुरुस्कार नहीं मिला, उनके चेहरें अभी भी मेरी नज़रों में घूम रहे हैं। मुझे व्याकुल कर रहे हैं। मुझे बहुत बुरा लग रहा है।

और हम देख ही रहे थे कि ...

दिल्ली में एक और बम ... और अभिषेक को कल वहाँ द्रोण से सम्बंधित वस्तुओं को बेचने के लिए जाना है। मैं उसे रोकता हूँ। सुरक्षा की वजह से नहीं, बल्कि संवेदनशीलता की वजह से। जब दिल्ली में ऐसी स्थिति हो तो क्या सामान बेचने की बात करना उचित होगा?

मैं उस सब से स्तब्ध हूँ जो हमारे आसपास आए दिन होता है। स्तब्ध और क्रोधित और कुंठित।

हमें शक्ति चाहिए और मनोबल चाहिए इससे लड़ने के लिए। और ज़रुरी नहीं कि हिंसा के माध्यम से। हमें जनता को शिक्षित करना चाहिए ताकि वे ऐसी वारदातों को समझ सके बुद्धिमानि से। हमें उन्हें भी शिक्षित करना होगा जो बहक गए है ताकि वे समझ सके कि इस तरह के कारनामें व्यर्थ हैं। हमें उन्हें समझने की जरूरत है और उन्हें हमें। दया और बल का मिश्रण। प्यार और पक्के मन का।

कोई तो करे ये हमारे लिए! कोई तो हो!!


http://blogs.bigadda.com/ab/2008/09/28/day-162/#more-456

Saturday, September 27, 2008

161 वां दिन

ग्रांड ओपेरा थियेटर, तेजस्वी और भव्य और अलंकृत और ऐश्वर्य से भरपूर। क्या महिमा है और यह एक उच्च कोटि की रचना है, इसका निर्माण प्रशंसनीय है।

जया और मैं ऑर्केस्ट्रा ज़ोन में बैठे थे इस आधुनिक आधुनिक बैले को देखने के लिए - राबिन्स (पश्चिम और अमरीका के ऐतिहासिक नृत्य-नाटक के प्रख्यात नृत्य-निर्देशक) की याद में और उन्हीं की पद्धति में नृत्य-नाटक, - एक अलग, कलात्मक, विनोदी और काव्यात्मक अभिव्यक्ति था - सब एक में लपेटा हुआ। लेकिन इस स्थान की खूबसूरती बस भी आधुनिक बैले के लिए कुछ भारी पड़ रही थी। पारम्परिक नृत्य-नाटिका के लिए यह स्थान ठीक रहेगा।

आप में से कई लोगों ने हम दोनों के साथ मिलकर के फ़ोटो खींचने की कामना की थी। लीजिए, हम आ गए, थिएटर से बाहर निकल कर, ठंडी रात में। किसी तरह से कुछ बातूनी महिलाओं से बचकर, जो कि हमसे तीन कतार पीछे बैठी थी। गला फ़ाड़-फ़ाड़ कर, मेरी तरफ़ इशारा कर के, बार बार कह रही थी - 'वह बहुत बड़ा अभिनेता है, बहुत बड़ा।' एक सुखद सम्मानजनक मुस्कान के साथ। मैं थोड़ा शर्माया। इसलिए जल्दी से पर्शिंग से सलाद लेने के लिए गायब हो गया। पर्शिंगं रेस्टोरेंट का नाम एक प्रसिद्ध अमेरिकी जनरल के नाम पर रखा गया है। जिन्होंने पेरिस को हिटलर से बचाया था।

थोड़ा चिंताग्रस्त लग रहा हूँ. लेकिन इसकी सजावट और संगीत में बहुत अपनापन था।

मेरा प्यार ही प्यार, पहले की तरह। . और मैं वापस प्रतीक्षा में, मुंबई सितम्बर 27, 2008, 2:53am पर

अमिताभ बच्चन
http://blogs.bigadda.com/ab/2008/09/27/paris-pix-4/#more-453

Friday, September 26, 2008

160 वां दिन

सितम्बर 26, 2008

इस समय मेरी घड़ी में बजे है 2.30pm और कम्प्यूटर के हिसाब से मुम्बई में 6.30pm

लंदन से मुंबई की यात्रा कुछ इस तरह होगी - JET 9W 0119 पर d0930A, a1100P

अभी हमने तुर्की और इराक पार किया है।

मैं यादों में खो रहा हूँ और प्लेन बादलों पर धक्के खा रहा है।

तीन महीने गुज़र गए हैं जब से मैंने स्टूडियो में कैमरे का सामना नहीं किया है। और मैं सोचता हूँ कि क्या ये मैंने सही किया।

काम से मुझे ताकत मिलती है। इसने मेरा दिमाग और शरीर जीवित रखा है। इसकी वजह से मैं अगले दिन का इंतज़ार करता हूँ। इसने मेरी परीक्षा ली है, मुझे कगार पर खड़ा किया है, मुझमें इच्छा जगाई है ध्यान केंद्रित करने की, कुछ सोचने की, कुछ पाने की, कुछ देने की।
नए विचार और प्रतिभा की संगत दी। कुछ करने की, कुछ जानने की, कुछ समझने की। मेरे अंतर को व्यक्त करने की, उसे घोषित करने की।

ज़िंदगी कितनी अजीब है। जब आप बाहर हैं तो अंदर आना चाहते हैं, जब आप अंदर हैं तो बाहर जाना चाहते हैं।

हम बार बार इससे जुझते हैं। हम जानते हैं कि अंततः हम सब बाहर हो जाएगे। लेकिन क्या हम सचमुच ऐसा अंत चाहते हैं? हम में से ज्यादातर नहीं। हम इसे टालते रहते हैं, आगे बढ़ाते रहते हैं और चलते जाते हैं।

लेकिन समय सब कुछ बदल देता है। हमें समय का आदर करना चाहिए।

यही चिंता मुझे लगातार खाए जाती है। समय को कैसे सहेजूँ। कैसे न सिर्फ समय की पाबंदी रखूँ, बल्कि हर पल का आदर कर सकूँ। क्योंकि ... "अनवरत समय की चक्की चलती जाती है, मैं जहाँ खड़ा था कल उस थल पर आज नहीं, कल इस जगह फिर आना मुझको मुश्किल है"

कल मैं पेरिस में था, आज मुंबई में हूँ। अभी उतरा। कल मैं करजात जाऊँगा।

समय का वृत्त चलता रहता है।

ओह! जैसे जैसे समय बीत रहा है, वैसे वैसे मैं बहुत दार्शनिक होता जा रहा हूँ। अरे भई बच्चन जी, थोड़ा आराम करिए। दर्शन पर सोचने के लिए अभी बहुत समय है। लेकिन, क्या सचमुच?

हम घर आ गए हैं! यह वरसैलिस या प्लेस डि ला कान्कार्ड या ट्रोकाडेरो या ओपेरा का ग्रांड पेलेस नहीं है, लेकिन घर है। मेरा घर है। आत्मीय और व्यक्तिगत। मेरा घर!!

2:28am पर आप के लिए मेरा प्यार, मुंबई का स्थानीय समय 27 सितम्बर 2008 के दिन


अमिताभ बच्चन

http://blogs.bigadda.com/ab/2008/09/27/day-160/#more-455

159 वां दिन

पूरा दिन बस यूँ ही बीता, पुराने छोटे-मोटे कामों को सम्हालने में ... इसलिए कुछ नया लिख नहीं पाया… पर दिन का एक बड़ा हिस्सा गुज़ार दिया टिप्पणियों का जवाब देने में … जितनों का दे सकता था दे दिया … 157 वें दिन के बाद से। और एक टिप्पणी में दिए गए सुझाव के मुताबिक अब हर टिप्पणी के जवाब में उस व्यक्ति का नाम शामिल किया जाएगा और साथ ही दिन का उल्लेख भी - ताकि आप सबको अपनी अपनी टिप्पणी पर मेरा जवाब ढूंढने में आसानी हो।

उदाहरण के लिए, विभा day157 या d157 और फिर प्रतिक्रिया ..

अब मैं हवाई अड्डे के लिए निकल रहा हूँ, मुंबई की यात्रा के लिए। बाद में और लिखूँगा। हो सकता है प्लेन से ही लिख दूँ और कुछ ताजा फ़ोटो भी भेज दूँ।

.. तब तक के लिए

प्यार और प्यार ..

अमिताभ बच्चन
http://blogs.bigadda.com/ab/2008/09/26/day-159/#more-454

Thursday, September 25, 2008

158 वां दिन

158 वां दिन
पेरिस,
24/25 सितम्बर 2008
रात के 12:15

यह काम कर रहा है! यह काम करता है! यह काम कर रहा है!

यह ब्लॉग अब बहुत बढ़िया काम कर रहा है! क्या बात है! आनंद ही आनंद!

मैं कई लोगों की टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया व्यक्त कर चुका हूँ, लेकिन बाकी के लिए समय नहीं मिला। मैं फिर से प्रयास करूँगा। अभी बहुत देर हो चुकी है। सुबह जल्दी उठना है, घर की फ़्लाईट पकड़ने के लिए। सुबह कोशिश करूँगा।

कल का दिन, अन्य दिनों के मुकाबले में, बड़ा अलसाया सा गुज़रा। सुनील, मेरे ब्रांड मैनेजर, का जन्मदिन था। पेरिस की अन्ना से शादी करने के बाद, वह भी अब थोड़ा बहुत फ़्रेंच ही है, लेकिन उसकी फ्रेंच अभी भी कमज़ोर है। अभी तो गुजरात का ही प्रभाव है।

शाम शांति से गुज़री कमरे में। कुछ अन्ना के स्थानीय मित्र आए थे। सुनील को मैंने उपहार दिया - 'देसी' भारतीय शाकाहारी भोजन - जब से यहाँ आया है, सलाद और एस्परागस से ही काम चला रहा था।

एक उसका दोस्त है - सर्गे - जो कि पेशेवर फ़िल्म संरक्षक है। उसने कई सारी दिलचस्प कहानियाँ सुनाई कि कैसे उसने पुरानी और खोई हुई फ़िल्मों को ढूंढा और उन्हें बचाया।

संरक्षण एक ऐसी कला है जो कि किसी भी देश के इतिहास और जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलू है। भारत में अभी तक इस विषय पर ज्यादा सोचा नहीं गया है। हाँ, कुछ संस्थान है जो इस प्रक्रिया में शामिल हैं, लेकिन उस हद तक नहीं जितना कि उन्हें होना चाहिए। जया भरसक कोशिश कर रही है कि मेरी सारी फ़िल्मों की प्रतियां या नेगेटिव्स मिल जाए, लेकिन घोर असफ़लता ही हाथ आ रही है। लेबोरेटरीज़ (प्रयोगशालाओं) और आफ़िसेस (कार्यालयों) के पास उनका कोई रिकॉर्ड ही नहीं है। कितनी दयनीय स्थिति है।

आज की शाम बहुत शानदार रही।

पलाईस गारनियर, एक भव्य ओपेरा थियेटर है, और इतने सुंदर ढंग से अलंकृत। बैले नृत्य दिलचस्प था। आधुनिक और विनोदमय, पर बहुत ही अच्छा। थियेटर के कोने कोने से ऐश्वर्य टपक रहा था।

हाँ मोबाइल द्वारा फोटों खींचे हैं। मैं उन्हें ब्लाग पर दिखाने का प्रयास कर रहा हूँ। इस बार मेरा एक फोटो जया के साथ भी है और एक मेरा अकेले का भी है।

पेरिस शहर हमारे लिए बहुत दयालु और उदार रहा। यहाँ से जाने के बाद यहाँ की याद आएगी। लेकिन उम्मीद है कि यहाँ वापस आने के और भी अवसर आएंगे। ये सोचकर दु:ख हो रहा है कि जिस दिन हम यहाँ से जा रहे हैं उसी दिन ऐश्वर्य यहाँ आ रही है ब्राज़िल से लोरिएल की शूटिंग के लिए। लेकिन मुझे जाना ही होगा क्योंकि मुझे मुंबई में एक टीवी शो में शामिल होना है - जो कि पूर्व-अनुबंधन है और परिवर्तन से परे ...

मेरे मोबाइल आज, पर एक दुखद लेकिन उचित एसएमएस प्राप्त हुआ, जिसने मुझे सोचने पर मज़बूर कर दिया। आप भी पढ़ें --

"एक ऐस शूटर स्वर्ण पदक जीतता है और सरकार उसे 1 करोड़ रुपए देती है।
एक और ऐस शूटर आतंकवादियों से लड़ कर मर जाता है और सरकार उसे 5 लाख का भुगतान करती है।

असली विजेता कौन?"

मानव बनने के लिए, मानवीय बनें।।

मेरा प्यार सब के लिए

अमिताभ बच्चन
http://blogs.bigadda.com/ab/2008/09/25/day-158/