Thursday, September 25, 2008

158 वां दिन

158 वां दिन
पेरिस,
24/25 सितम्बर 2008
रात के 12:15

यह काम कर रहा है! यह काम करता है! यह काम कर रहा है!

यह ब्लॉग अब बहुत बढ़िया काम कर रहा है! क्या बात है! आनंद ही आनंद!

मैं कई लोगों की टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया व्यक्त कर चुका हूँ, लेकिन बाकी के लिए समय नहीं मिला। मैं फिर से प्रयास करूँगा। अभी बहुत देर हो चुकी है। सुबह जल्दी उठना है, घर की फ़्लाईट पकड़ने के लिए। सुबह कोशिश करूँगा।

कल का दिन, अन्य दिनों के मुकाबले में, बड़ा अलसाया सा गुज़रा। सुनील, मेरे ब्रांड मैनेजर, का जन्मदिन था। पेरिस की अन्ना से शादी करने के बाद, वह भी अब थोड़ा बहुत फ़्रेंच ही है, लेकिन उसकी फ्रेंच अभी भी कमज़ोर है। अभी तो गुजरात का ही प्रभाव है।

शाम शांति से गुज़री कमरे में। कुछ अन्ना के स्थानीय मित्र आए थे। सुनील को मैंने उपहार दिया - 'देसी' भारतीय शाकाहारी भोजन - जब से यहाँ आया है, सलाद और एस्परागस से ही काम चला रहा था।

एक उसका दोस्त है - सर्गे - जो कि पेशेवर फ़िल्म संरक्षक है। उसने कई सारी दिलचस्प कहानियाँ सुनाई कि कैसे उसने पुरानी और खोई हुई फ़िल्मों को ढूंढा और उन्हें बचाया।

संरक्षण एक ऐसी कला है जो कि किसी भी देश के इतिहास और जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलू है। भारत में अभी तक इस विषय पर ज्यादा सोचा नहीं गया है। हाँ, कुछ संस्थान है जो इस प्रक्रिया में शामिल हैं, लेकिन उस हद तक नहीं जितना कि उन्हें होना चाहिए। जया भरसक कोशिश कर रही है कि मेरी सारी फ़िल्मों की प्रतियां या नेगेटिव्स मिल जाए, लेकिन घोर असफ़लता ही हाथ आ रही है। लेबोरेटरीज़ (प्रयोगशालाओं) और आफ़िसेस (कार्यालयों) के पास उनका कोई रिकॉर्ड ही नहीं है। कितनी दयनीय स्थिति है।

आज की शाम बहुत शानदार रही।

पलाईस गारनियर, एक भव्य ओपेरा थियेटर है, और इतने सुंदर ढंग से अलंकृत। बैले नृत्य दिलचस्प था। आधुनिक और विनोदमय, पर बहुत ही अच्छा। थियेटर के कोने कोने से ऐश्वर्य टपक रहा था।

हाँ मोबाइल द्वारा फोटों खींचे हैं। मैं उन्हें ब्लाग पर दिखाने का प्रयास कर रहा हूँ। इस बार मेरा एक फोटो जया के साथ भी है और एक मेरा अकेले का भी है।

पेरिस शहर हमारे लिए बहुत दयालु और उदार रहा। यहाँ से जाने के बाद यहाँ की याद आएगी। लेकिन उम्मीद है कि यहाँ वापस आने के और भी अवसर आएंगे। ये सोचकर दु:ख हो रहा है कि जिस दिन हम यहाँ से जा रहे हैं उसी दिन ऐश्वर्य यहाँ आ रही है ब्राज़िल से लोरिएल की शूटिंग के लिए। लेकिन मुझे जाना ही होगा क्योंकि मुझे मुंबई में एक टीवी शो में शामिल होना है - जो कि पूर्व-अनुबंधन है और परिवर्तन से परे ...

मेरे मोबाइल आज, पर एक दुखद लेकिन उचित एसएमएस प्राप्त हुआ, जिसने मुझे सोचने पर मज़बूर कर दिया। आप भी पढ़ें --

"एक ऐस शूटर स्वर्ण पदक जीतता है और सरकार उसे 1 करोड़ रुपए देती है।
एक और ऐस शूटर आतंकवादियों से लड़ कर मर जाता है और सरकार उसे 5 लाख का भुगतान करती है।

असली विजेता कौन?"

मानव बनने के लिए, मानवीय बनें।।

मेरा प्यार सब के लिए

अमिताभ बच्चन
http://blogs.bigadda.com/ab/2008/09/25/day-158/

2 comments:

MANVINDER BHIMBER said...

ek nai shuruwaat ho gai ye to.....Amit ji bhi hamare beech aa gae hai.....swaagat hai apka

Anonymous said...

hindi me aap khud likhte hai ya kisi ki madad lete hai.jo log aap ko mail karte hai kya unhe javab bhi diya jata hai ya ek tarfa sanvad hota hai.

ambrish