Tuesday, September 30, 2008

162 वां दिन

प्रतीक्षा, मुंबई सितम्बर 27/28, 2008 12:57am

आज का पूरा दिन 'जुनून', NDTV ईमेजिन के संगीत शो, में बीता, जहाँ अभिषेक और मुझे 'अनफ़ारगेटेबल कांसर्ट' के प्रचार के लिए जाना पड़ा और हाँ फाइनल के लिए पुरस्कार भी तो देने थे।

नितिन देसाई एक सक्षम और उद्यमी सेट डिजाइनर हैं। उन्होंने करजात में एक स्टूडियो का निर्माण किया है। एकड़ों खुली जमीन और आँखों के लिए तो बस एक लुभावनी दावत, खासकर मानसून के तुरंत बाद तो क्या कहने।

हमें वहाँ तक जाते-जाते 3 घंटे लगे - ट्रेफ़िक की वजह से। पर वहाँ पहुंचने पर बहुत अच्छा लगा कि हम दोनों भी इस उत्तम श्रेणी के कार्यक्रम का एक हिस्सा है। देखिए ना, कितनी तेजी से भारत में मनोरंजन की दुनिया बदल गई है। विश्वास ही नहीं होता है। लाखों लोग मशगूल है पूरी संजीदगी से एक ध्येय की ओर। कितना कुछ खप जाता है एक शो को तैयार करने में! मैं चकित हूँ! मगर खुशी है कि प्रतिभाओं को उभरने में अब आसानी होगी और उन्हें ज्यादा अवसर मिलेंगे अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए। एन डी स्टूडियो, अपने आप में एक शहर की तरह है। शूटिंग के लिए विशाल फर्श, सितारों और स्टाफ के लिए कमरें, आउटडोर शूटिंग के लिए वास्तविक अनुपात में बने बनाए सेट, कार्यालयों और प्रबंधन के लिए अलग क्षेत्र, जो चाहिए वो सब कुछ।

इन दिनों अपने प्रचार के लिए एक लोकप्रिय टीवी प्रोग्राम का उपयोग करना एक आम बात हो गई है। आज हम आमंत्रित मेहमान हैं। हमें शो में आदर सम्मान दिया जाता है। हमें सुसज्जित कुर्सियों पर बिठाया गया। हम प्रतियोगियों का कार्य देखते हैं और विजेताओं को इनाम देते हैं। बीच बीच में हमारी फिल्म या हमारे शो के बारे में बहुत सी बातें की जाती है। 'द्रोण' और 'अनफ़ारगेटेबल कांसर्ट' के बारे में बातें होती हैं, कैसा अनुभव रहा, कैसे उनके प्रोमोज़ थे, आदि आदि।

वे हमारा फ़ायदा करते हैं हम उनका। सब व्यापार है।

लेकिन ...

इस छोटी सी लेन देन के बीच में भी जीवन मौजूद है। एक अनजान, अनसुनी प्रतिभा का जीवन जो हम सब को आश्चर्यचकित कर देता है।

क्या लय है क्या ताल है। क्या गीत है क्या संगीत है। उनके दृष्टिकोण में कितना आत्म-विश्वास है और अनुग्रह। जैसे रचनात्मकता का एक विशाल भंडार हो। मेरा दिल उनके लिए दुआ मांगता है।

वे देश के कोने कोने से आए थे। सिर्फ़ महानगरों से नहीं। वास्तव में ज्यादातर प्रतियोगी छोटे शहरों से आए थे। कुछ आसपास के देशों से भी आए थे। और वे इतनी आशा और विश्वास के साथ आए थे।

वे सच्चे कलाकार हैं। जीतने के लिए जी जान लगाते हैं। पुरस्कार में एक कार, कुछ पैसे, और एक आकर्षक अनुबंध। वाहवाही और प्रशंसा भी साथ में। वे विनम्र हैं और समर्पित। सरल और अछूते। वे महान चरित्र हैं। और वे एक आवाज़ है। एक असाधारण आवाज़।

बहुत लोग भाग लेते हैं। बहुत से लोगों को बाहर कर दिया जाता है। कुछ लोग ही अंत तक पहुँचते हैं। लेकिन सब में प्रतिभा है किसी भी स्पर्धा को जीतने की।

चयन की प्रक्रिया लोकतांत्रिक होने की वजह से उन्हें निकाल दिया जाता है। वरना सभी जीतने के हक़दार हैं। हालांकि उनमें से एक ही जीत पाएगा, पर मेरे लिए सभी विजेता हैं।

मैं निर्णायक बन कर नहीं बैठता हूँ। मैं बन ही नहीं सकता। एक बार दक्षिण अफ्रीका में मिस वर्ल्ड के लिए जज बना था और वह मेरे जीवन का सबसे पशोपेश वाला क्षण था। तुम कैसे एक इंसान को दूसरे इंसान से कम नम्बर दे सकते हो। मनुष्य सब एक जैसे हैं। सभी बुद्धिमान और सुंदर और इनाम के योग्य। कैसे एक व्यक्ति दूसरे की तुलना में बेहतर हो सकता है। ऐसा नहीं होना चाहिए, और मैं इसके पक्ष में नहीं हूँ।

एक माँ के लिए एक बच्चा दूसरे बच्चे से कम कैसे हो सकता है?

इसलिए मैं स्पर्धाओं से दूर रहता हूँ। उनसे मुझे दु:ख पहुँचता है। अंत में जब तीन प्रतिद्वंदी रह जाते हैं तो उन में से दो को कोई कैसे कहे कि विजेता तीसरा है? कितना मुश्किल है और कठिन है! इसलिए हमारा परिवार ऐसे पैनलों पर बैठने से कतराता है। हमारा इस शो में उपस्थित होना अनिवार्य है, इसलिए हम यहाँ आए हैं, लेकिन हम निर्णायक नहीं बनेगे, जीत-हार का फ़ैसला नहीं करेंगे। मुझे जा कर विजेता पुरस्कृत करने हैं। बस इतना ही। और कुछ नहीं। और मैं बस यहीं करता हूँ।

वापस आते वक़्त, नितिन ने मुझे बुलाया उस धारावाहिक के सेट पर जिसे वे प्रोड्यूस कर रहे हैं, जिसमें महान मराठा, छत्रपति शिवाजी महाराज की जीवन गाथा है। युवा अभिनेता जो शिवाजी की भूमिका अदा कर रहा है, वो इस महान योद्धा की जीती जागती तस्वीर है। एक टीवी सीरियल पर इतना खर्च और इतनी विस्तृत जानकारी देख कर मैं चकित हूँ। मैंने कुछ प्रोमोज में कुछ अंश देखे। देखने में ऐसी कि जैसे एक बड़े बजट की फिल्म। नितिन चाहते हैं कि शिवाजी के दरबार में राज्याभिषेक के दृश्य में मैं भी रहूँ। मैं भरसक कोशिस कर रहा हूँ कि इसके लिए समय निकाल पाऊँ।

नितिन ने मेरी कई फिल्मों के लिए काम किया है। उनमें से सबसे महत्वपूर्ण कार्य था 'कौन बनेगा करोड़पति' और जोधा अकबर के सेट का निर्माण। सृजनशील हैं, बेहद प्रतिभाशाली हैं, और बहुत ही साधारण परिवेश से है, और आज अत्यंत सफल। लेकिन आज भी वैसे ही विनम्र हैं जैसे पहले थे। मैंने हमेशा इस तरह के पुरुषों की प्रशंसा की है।

वे एबी कॉर्प की एक और महत्वाकांक्षी परियोजना पर जल्दी ही काम करने वाले हैं, जहाँ उनकी क्षमता की जमकर परीक्षा ली जाएगी। लेकिन मैं जानता हूँ कि वे उसे बखूबी निभा लेंगे।

वापसी पर ट्रेफ़िक के डर की वजह से, और इस वजह से भी कि अभिषेक को जल्दी शाम को एक शूटिंग पर पहुँचना है, उन्होनें हमारे लिए एक हेलिकॉप्टर की व्यवस्था की। हमें सिर्फ़ 15 मिनट लगे वापस आने में। ठीक घर के दहलीज पर उतारा। कितना सुविधाजनक और समय की बचत भी।

जया और मैं रात का खाना खाने बैठें और हम देख रहे थे वही प्रोग्राम जिसमें हम अभी उपस्थित थे। अच्छा लगा। अनफ़ारगेटेबल टूर का प्रचार अच्छा लगा। और द्रोण का प्रचार भी। लेकिन जिन प्रतिभाओं को आज पुरुस्कार नहीं मिला, उनके चेहरें अभी भी मेरी नज़रों में घूम रहे हैं। मुझे व्याकुल कर रहे हैं। मुझे बहुत बुरा लग रहा है।

और हम देख ही रहे थे कि ...

दिल्ली में एक और बम ... और अभिषेक को कल वहाँ द्रोण से सम्बंधित वस्तुओं को बेचने के लिए जाना है। मैं उसे रोकता हूँ। सुरक्षा की वजह से नहीं, बल्कि संवेदनशीलता की वजह से। जब दिल्ली में ऐसी स्थिति हो तो क्या सामान बेचने की बात करना उचित होगा?

मैं उस सब से स्तब्ध हूँ जो हमारे आसपास आए दिन होता है। स्तब्ध और क्रोधित और कुंठित।

हमें शक्ति चाहिए और मनोबल चाहिए इससे लड़ने के लिए। और ज़रुरी नहीं कि हिंसा के माध्यम से। हमें जनता को शिक्षित करना चाहिए ताकि वे ऐसी वारदातों को समझ सके बुद्धिमानि से। हमें उन्हें भी शिक्षित करना होगा जो बहक गए है ताकि वे समझ सके कि इस तरह के कारनामें व्यर्थ हैं। हमें उन्हें समझने की जरूरत है और उन्हें हमें। दया और बल का मिश्रण। प्यार और पक्के मन का।

कोई तो करे ये हमारे लिए! कोई तो हो!!


http://blogs.bigadda.com/ab/2008/09/28/day-162/#more-456

2 comments:

Anonymous said...

अमित अण्कल!
आप का ब्लाग पढ़ कर अच्छा लगता है.

www.ashokbindu.blogspot.com

www.slydoe163.blogspot.com

Anonymous said...

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