Friday, September 26, 2008

160 वां दिन

सितम्बर 26, 2008

इस समय मेरी घड़ी में बजे है 2.30pm और कम्प्यूटर के हिसाब से मुम्बई में 6.30pm

लंदन से मुंबई की यात्रा कुछ इस तरह होगी - JET 9W 0119 पर d0930A, a1100P

अभी हमने तुर्की और इराक पार किया है।

मैं यादों में खो रहा हूँ और प्लेन बादलों पर धक्के खा रहा है।

तीन महीने गुज़र गए हैं जब से मैंने स्टूडियो में कैमरे का सामना नहीं किया है। और मैं सोचता हूँ कि क्या ये मैंने सही किया।

काम से मुझे ताकत मिलती है। इसने मेरा दिमाग और शरीर जीवित रखा है। इसकी वजह से मैं अगले दिन का इंतज़ार करता हूँ। इसने मेरी परीक्षा ली है, मुझे कगार पर खड़ा किया है, मुझमें इच्छा जगाई है ध्यान केंद्रित करने की, कुछ सोचने की, कुछ पाने की, कुछ देने की।
नए विचार और प्रतिभा की संगत दी। कुछ करने की, कुछ जानने की, कुछ समझने की। मेरे अंतर को व्यक्त करने की, उसे घोषित करने की।

ज़िंदगी कितनी अजीब है। जब आप बाहर हैं तो अंदर आना चाहते हैं, जब आप अंदर हैं तो बाहर जाना चाहते हैं।

हम बार बार इससे जुझते हैं। हम जानते हैं कि अंततः हम सब बाहर हो जाएगे। लेकिन क्या हम सचमुच ऐसा अंत चाहते हैं? हम में से ज्यादातर नहीं। हम इसे टालते रहते हैं, आगे बढ़ाते रहते हैं और चलते जाते हैं।

लेकिन समय सब कुछ बदल देता है। हमें समय का आदर करना चाहिए।

यही चिंता मुझे लगातार खाए जाती है। समय को कैसे सहेजूँ। कैसे न सिर्फ समय की पाबंदी रखूँ, बल्कि हर पल का आदर कर सकूँ। क्योंकि ... "अनवरत समय की चक्की चलती जाती है, मैं जहाँ खड़ा था कल उस थल पर आज नहीं, कल इस जगह फिर आना मुझको मुश्किल है"

कल मैं पेरिस में था, आज मुंबई में हूँ। अभी उतरा। कल मैं करजात जाऊँगा।

समय का वृत्त चलता रहता है।

ओह! जैसे जैसे समय बीत रहा है, वैसे वैसे मैं बहुत दार्शनिक होता जा रहा हूँ। अरे भई बच्चन जी, थोड़ा आराम करिए। दर्शन पर सोचने के लिए अभी बहुत समय है। लेकिन, क्या सचमुच?

हम घर आ गए हैं! यह वरसैलिस या प्लेस डि ला कान्कार्ड या ट्रोकाडेरो या ओपेरा का ग्रांड पेलेस नहीं है, लेकिन घर है। मेरा घर है। आत्मीय और व्यक्तिगत। मेरा घर!!

2:28am पर आप के लिए मेरा प्यार, मुंबई का स्थानीय समय 27 सितम्बर 2008 के दिन


अमिताभ बच्चन

http://blogs.bigadda.com/ab/2008/09/27/day-160/#more-455

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